मरने पर क्या जीते जी हो, स्वर्ग धरा पर ला दिखलाओ ।।
अन्धकार में भटक रहे जन, तुम प्रकाश बन जाओ ।
ठोकर खाते पथ भ्रष्टों को , सत्य मार्ग दिखलाओ ।।
औरों का गुण- दोष देखना, कौन भला है कौन बुरा है ।
पर अपने में झाँक न पाया, ख़ुद अच्छा है या कि बुरा है।।
औरों के दोषों को गिन गिन, रख छोड़ा है अपने मन में ।
अपने दोषों को ढक रक्खा, नक़ली फूलों के उपवन में ।।
कर्म क्षेत्र के धन्य वीर वे, जो पहले आगे आते हैं ।
पीछे तो लाखों अनुयायी , बिना बुलाये आ जाते हैं।।
अब किसके इन्तज़ार में हो,आगे बढ़ो एक दूसरे का,
हाथ थाम लो टूटती कडिं़या फिर जुड़ जावेगीं ।।
अखिल धरा यह महावीर की,इसमें देश विदेश नहीं ।
गूँजे करूणा और क्षमा- स्वर,मानव उर में सभी कहीं ।।
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