निद्रित नयनों की स्वरगंगा में तुम , सपनों की स्वर्ण तरी सी तिरती हो ।।
" युगों के बाद मधुरे, फिर तुम्हारा मौन बोला है ,
हमारे भी अचानक आज अधरों पर हँसी आई ।
तिमिर के सिन्धु में सहसा रजत आलोक छाया है,
विरह के शून्य नन्दन में मिलन मधुमास आया है।
तुम्हारे रूप की छाया दृगों में मूक शरमाई ,
युगों के बाद मधुरे, तुम्हारा मौन बोला है ,
हमारे भी अचानक आज अधरों पर हँसी आई ।।"
जगदीश प्रसाद जैन
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