Sunday, 22 June 2014

कर्म ही पूजा है:----

श्री कृष्ण ने गीता में कहा है:----
" कर्मण्येवाधिकारन्ते माँ फलेषु कदाचन् " मैंने आपको सतत निष्काम भाव से कर्म करते देखा है ।
आपके जीवन का उसूल है कि मुझसे अधिक से अधिक ग़रीबों का उपकार हो।
हिन्दी भाषा के विख्यात राष्ट्रीय कवि श्री मैथिलीशरण गुप्त ने उप्रोक्त पंक्तियों  निम्नप्रकार से मूर्तिरूप किया है:----
" वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिये मरे "
इसको दूसरे रूप में कह सकते हैं :-- " बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय "
         
                       संकलनकर्ता:--  जगदीश प्रसाद जैन 


                             

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