कितनी रोती आँखों के , दु:ख अश्रु पोंछें मैंने ?
कितने गिरते दीन जनों को , दिया सहारा स्वयं दौड़कर ?
कितनी मेट सका हूँ दूरी , सबको अपना बन्धु बनाकर ?
मैं सबमें हूँ , सब हैं मुझमें , मैं सबका हूँ,सब हैं मेरे ।
साम्य योग के उक्त मंत्र से, तोड़ सका हूँ कितने घेरे ?
- राष्ट्र सन्त गुरूदेव उपाध्याय अमरमुनि जी द्वारा रचित -
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