Monday, 20 October 2014

अहिंसा दर्शन :--------

                जैन - धर्म दृढ़तापूर्वक कहता है कि वह मैल आत्मा पर लगा हुआ होता है।अत: दुनियाभर के तीर्थों में क्यों भटका
जाए ? सबसे बड़ा तीर्थ तो अपनी आत्मा ही होती है,क्योंकि उसी में अहिंसा और प्रेम की निर्मल धाराएॅ बहती हैं। उसमें ही डुबकी
लगा लेने से पूर्ण शुद्धता प्राप्त होती है। जहाँ अशुद्धि है, वहाँ की ही तो शुद्धि करनी है। जैन दर्शन बड़ा आध्यात्मिक दर्शन है, और
वह इतना ऊँचा भी है वह मनुष्य को मनुष्यत्व के अन्दर बन्द करता है । मनुष्य की दृष्टि मनुष्य में डालता है। अपनी महानता अपने
ही अन्दर तलाश करने को कहता है ।
                  व्यक्ति अपना कल्याण करना चाहता है, किन्तु प्रश्न उठता है कि कल्याण करें भी  तो कहाँ करें? यहाँ  पर जैन -
धर्म स्पष्टत: कहता है कि - जहाँ तुम हो,वहीं पर,बाहर किसी गंगा या और किसी नदी पहाड़ में नहीं । आत्म कल्याण के लिय,जीवन
शुद्धि के लिए या अन्दर में सोए हुए भगवान को जगा ने के लिए एक इंच भी इधर उधर जाने की ज़रूरत नहीं है। तू जहाँ है ,वहीं
जाग जा और आत्मा का कल्याण कर ले । 

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