Monday, 14 September 2020

LORD MAHAVIRA. :----------24rth.Thirthanker Bhawan Mahavir Swamiji--- Birth in year 599 B.C.-Birthplace:- Kshatriyakund, Vaishali

भगवान महावीर स्वामी जी का जन्म वैशाली के वाज्जिकुल में बसोकुंड (बसाढ ) ग्राम में ईसा से ५९९ वर्ष पूर्व हुआ था। आजकल वैशालीि ज़िला का मुख्यालय हाजीपुर है,यह पटना रेलवे स्टेशन से ७० किलो है। आपके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम
त्रिशला था।आपका विवाह यशोंदा नाम की कन्या से हआ था,इसके पश्चात एक पुत्री को जन्म दिया जिसका नाम प्रियदर्शनी था।
आपको ४२ वर्ष की उम्र में केवल्यज्ञान प्राप्त किया था।आापने ७२ वर्ष की उम्र में ( ईसा से ५२७ पूर्व ) पावापुरी में निर्वाण प्राप्त 
किया था।यह स्थान पटना रेलवे स्टेशन से ९४ किलो मीटर की दूरी पर है।यह स्थान विहार प्रान्त के शहर (विहार शरीफ़ ) ज़िला 
नालन्दा में स्थित है।यह पावापुरी तीर्थ में भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण स्थल जहाँ भगवान के पूज्य चरण स्थल को जलमन्दिर
के नाम से भी जाना जाता है।पावापुरी, जिसे पावा भी कहा जाता है।यह जैन धर्म के मतावलंबियों के लिये एक अत्यंत पवित्र शहर है,क्योंकि माना जाता है कि भगवान महावीर स्वामी जी को यहाँ ही मोक्ष प्राप्त हुआ था।यहाँ के जलमन्दिर की शोभा देखते ही बनती है।पूरा शहर केमूर की पहाड़ियों पर बसा हुआ है।

Tuesday, 21 July 2020

मेरे बचपन के संस्मरण की घटना की सत्य कहानी:----

मेरा बचपन पुलछिंगा मोदी लोहामंडी में व्यतीत हुआ था।इसी स्थान के आसपास ज़्यादातर अग्रवाल लोहिया जैन समाज के लोग रहा करते थे।इसी स्थान पर एक जैन श्वेत्मबर स्थानकवासी स्थानक था।यहाँ सभी जैन समाज के लोग इकट्ठा होकर उपासना करते
थे।इसी जैन समाज के अच्छे परिवार का एक व्यक्ति श्री घनश्याम दास जैन के नाम आया और इसी समाज एवं परिवार के इस व्यक्ति को कम समझ होने की वजह से परिवार एवं समाज से तिृष्कृति होने की वजह से,इसी मोहल्ले के बच्चे चिडाते और परेशान
करते थे।इह दिमाग़ से भी बहुत कमज़ोर चिड़चिड़ा रहता था।और कुछ पागलपन की भी हरकतें करता और कभी श्मशान स्थान पर
जाकर सो जाया करता था।जिसकी वजह से मोहल्ले के बच्चे उसको घासीराम भूत के नाम से भी सम्बोधित  करते थे।वह अपने को
कृष्ण भगवान का अवतार कहता था और बच्चों को कृष्ण की लीलाओं का नाटक करके नाचता गाता रहता था।कभी कभी वह अपने सहारे के डन्डे को बाँसुरी का रूप बना अपने होटो के पास लगा कर कृष्ण की लीला का नाटक करने लगता था।मौहल्ले के 
बच्चे उसको चिडाते और उसके ऊपर पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े फेंकते ,उस समय वह अपना रौद्र रूप धारण करता और सबको 
गालियाँ बकता और कहता तुम सब रावण की सन्तान हो और तुम्हारी लंका में आग लग जावे और तुम जल कर भष्म हो जाओ।
इस प्रकार बच्चों को गाली बकता हुआ,तुम रावण की औलाद हो,कहता हुआ दौड़ाता था।इसी तरह की हरकतें करता हुआ वह
अपना जीवन निर्वाह कर रहा था।जीवन की ठोकरों से उकताये हुये राही की तरह,अपने लड़खड़ाते हुये क़दमों से,अपने जीवन की
अंतिम मन्जिल को लकड़ी के डन्डे के सहारे तय कर रहा था।मृत्यु भी उसके जीवन की दुर्दशा पर अट्टहास कर रही थी।काल भी
उसके कंकाल को हड़पने के लिये तैयार बैठा था।समाज और संसार की निगाहों में वह पागल,लाचार दिखाई पड़ता था।किन्तु
सत्यता तो यह है,कि लोहामंडी के बच्चों एवं समाज के ही कुछ लोगों ने,अपने हास्य परिहास्य का आनन्द लेने के लिये उसको
पागल,लाचार एवं भूत का रूप दिया हुआ था।

Saturday, 27 June 2020

उवसग्गहरं स्तोत्र

 उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म-घण-मुक्कं ।
विसहर विसनिन्नासं, मंगल-कल्लाण-।आवासं ।१।
विसहर फुलिंगमंतं, कण्ठे धारेई जो सया मणुओ ।
तस्स गह-रोग-मारी दुट्ठ-जरा जंति उवसामं ।२।
चिट्ठउ दूरे मंतो, तुझ पणामो वि बहुफलो होइ ।
नर-तिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख-दोहग्गं ।३।
तुह सम्मत्ते लद्धे चिंतामणि-कप्प-पाय वब्भहिए ।
पावंत्ति अविग्घेणं जीवा अयरामरं  ठाणं। ।४।
इह संथुओ महायस ! भत्तिब्भर- निब्भरेण हियएण ।
ता देव ! दिज्ज बोहिं भवे - भवे पास जिणचंद ।५
                                [   हिन्दी अनुवाद    ]
उपसर्गों को दूर करने वाले कर्म रूपी आवरणों से मुक्त विषों (विकारों) का नाश करने वाले मंगल-कल्याण के केन्द्र
पाशर्वनाथ भगवान की वन्दना करता हूँ ।।१।।
जो मानव, अष्टादश अक्षरों वाले विषहर मंत्र का सदा स्मरण करा है उसके ग्रह- रोग - मारी, दुष्टजन- ज़रा आदि उपशान्त 
रहते हैं ।।२ ।।
मंत्र तो दूर रहो, आपको प्रणाम करने का ही महाफल है। नरक तिर्यंचगति में ही जीव दु:ख नहीं पाता ।।३।।
आपके दर्शन और श्रद्धा की प्राप्ति चिंतामणि रत्न और कल्पवृक्ष आदि से भी अधिक महत्वपूर्ण है , जिसके प्रवाह से जीव शीध्र
ही अजरामर स्थान को प्राप्त करता है ।।४ ।।
    हे महायश पाशर्व जिनचन्द्र ! भक्ति रस से लबालब भरे हृदय से में आपकी स्तुति करता हूँ । भव- भव में मुझे सदबोधिकी 
प्राप्ति हो।। ५ ।।
                   

Wednesday, 19 February 2020

कर्नाटक प्रान्त पर्यटक की दृष्टि से एक महत्व पूर्ण एवं साँसकृतिक रूप से सम्पन्नमशहूर शहर की यात्रा की सुखद झलकियाँ :--

        श्रवणवेलगोला में विंध्यागिरि स्थित जैन धर्म अद्वितीय एवं मशहूर पवित्र भगवान गोमटेश्वर बाहुवली के विधि विधान से पूजा पाठ करने एवं अनेकों जैन धर्म के अनुयाईयों की तपस्यास्थली की पवित्रता का आध्यात्मिक आनन्द लेने के पश्चात,अपनी दोनो बेटियों के परिवार के साथ माह मार्च २०१९ के तीसरे सप्ताह में ,अपनी यात्रा के दूसरे पड़ाव मैसूर शहर के लिये रवाना हो गये।मैसूर शहर श्रवणवेलगोला से ८० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।यह शहर पर्यटन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण है।इस शहर में सबसे ज़्यादा पर्यटक दशहरा उत्सव के समय में बहुत आते हैं,क्योंकि दशहरा उत्सव यहाँ बड़े राजसी ठाठवाट के साथ मनाया जाता है।इस समय वाडियार राजपरिवार की तरफ़ से बड़े शान शौक़त से हाथियों की एवं सुन्दर झलकियाँ के साथ सवारियाँ निकाली जाती हैं।मैसूर महल एवं आसपास के स्थलों,जैसे जगमोहन प्लेस ,जय लक्ष्मी पैलेस एवं ललित महल आदि रमणीक स्थानों पर बारह महीने बड़ी चहल पहल एवं त्योंहारों जैसा वातावरण रहता है।

महाराजा पैलेस का राजमहल मैसूर के कृष्ण राज वाडियार चतुर्थ ने बनवाया था।इससे पहले का राजमहल चन्दन की लकड़ियों से बना हुआ था।एक दुर्घटना में इस महल की बहुत क्षति हो गई थी,इसके पश्चात इसी स्थान पर दूसरा महल बनवाया गया था,फिर इसी स्थान पर एक संग्रहालय भी बनवाया गया था।अब उसी स्थान पर पहले से अधिक सुन्दर एवं आकर्षित महल बना हुआ है।अब हमने दूसरे पड़ाव की सुखद यात्रा को आगे बजाते हुये इस राजमहल के साथ दूसरे दर्शनीय स्थल जैसे टीपू सुल्तान का महल,वृन्दावन गार्डन,प्रसिद्ध चिड़ियाघर  एवं चामुण्डा पर्वत पर महिषासुर की प्रतिमा एवं जी आर एस फैंटेसी पार्क या अम्यूजमेंट पार्क आदि को देखने का प्रोग्राम बनाकर शुरू किया।यह नगर अति सुन्दर एवं स्वच्छ है।इसमें रंग विरंगे पुष्पों से युक्त बाग़ बगीचों की भरमार है।अनेकों दर्शनीय स्थानों के आकर्शणों के कारण ही इस शहर को पर्यटकों का स्वर्ग कहते हैं।यहाँ का मैसूर पैलेस द्रविड़ और रोमन स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है।नफ़ासत
से घिरे सलेटी पत्थरों से बना यह महल गुलाबी                 रंग के पत्थरों के गुम्बदों से सज़ा है।यह गुम्बद सोने के पत्रों से सज़ा है।यह सूरज की रोशनी में ख़ूब जगमगाते हैं।यहाँ पर ८४ किलो सोने से सज़ा एक लकड़ी का हौद भी है।दशहरे के उत्सव पर इसको हाथी के ऊपर रख कर राजा की सवारी निकली है।अन्दर घूमने पर हम लोगों को एक विशाल कक्ष मिला,जिसके किनारे गलियारे में थोड़ी थोड़ी दूरी पर स्तम्भ बनें हुये हैं,इन सतम्भों एवं छतों पर बारीक सुनहरी नक़्क़ाशी है।दीवारों पर क्रम से अनेक चित्रों से सजी हुई हैं,यह चित्र सभी वाडियार परिवार के हैं।कक्ष के बीचों बीच छत नहीं है और ऊपर गुम्बज हैं,जो रंग विरंगे काँचों से सजे हुये हैं।इन रंग विरंगे काँचों का चुनाव ,सूरज और चाँद की रोशनी को महल में ठीक प्रकार से पँहुचाने के लिये किया गया है।और हफ़्ते के आख़िरी दिनों में,छुट्टियों एवं दशहरे के उत्सव पर महल को बिजली की रोशनी से एवं सजावट के अनेक उपकरणों से ऐसे सजाया जाता है कि आँखें भले ही चौंधिया जांय,लेकिन नज़रें उनसे नहीं हटती हैं।बिजली के ९७००० बल्व महल को एेसे जगमगा देते है जैसे चाँदनी रात्रि में जगमगाते हैं।जगमगाती रोशनी में महल की सुन्दरता अद्भुत रहती है।दूसरे दिन हम लोगों ने जी आर एस फैन्टेसी पार्क या अम्यूजमेंट पार्क,जो कि ३० एकड़ में फैला हुआ है ,घूमने का आनन्द लिया।इस पार्क के मुख्य आकर्षण पानी के खेल,रोमांचक सबारी और बच्चों के अनेकों
प्रकार के खेल तमासे सबको बहत आकर्षित। करते हैं।इसके पश्चात हम सब लोगों ने मैसूर के दक्षिण से १५ किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित चामुण्डेस्वरी के मन्दिर के दर्शन करने के लिये रवाना हो गये।यह मन्दिर माँ दुर्गा जी को समर्पित है,इस मन्दिर का निर्माण १२ वीं शताब्दी में किया गया था।यह मन्दिर माँ दुर्गा जी की,राक्षस महिसासुर के ऊपर विजय का प्रतीक है।पहाड़ी की चोटी से मैसूर शहर का बड़ा मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है।पहाड़ी के रास्ते में काले पत्थर से बना
नंदी बैल के भी दर्शन होते हैं।इस रास्ते में बहुत से इम्पोरियम भी हैं,इनके अन्दर चन्दन से बनी हुई सुन्दर वस्तुयें,सुन्दर मैसूर की साड़ियों आदि अनेकों ख़ूबसूरत वस्तुयें मिलती हैं।