Wednesday, 17 April 2013

आज का मानव-----------

मानव का केवल इस संसार में ही नहीं ,बल्कि पूरे ब्रह्माण्ड में सर्वश्रेष्ठ स्थान है ।इसीलिये मानव को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सबसे
अधिक तीव्र बुद्धिशाली जीव माना जाता है ।अत: इसी मानव जीवन को प्राप्त करने के लिए बड़े बड़े देवी देवता लालायित रहते
हैं । इसीलिए एक ग्रीक दार्शनिक विद्वान ने कहा था कि--"मनुष्य एक विवेकशील एवं बुद्धिशाली जानवर है" यानी मानव और
जानवर में केवल विवेक एवं बुद्धि का ही अन्तर है। अत: अगर मानव में विवेक बुद्धि न हो तो वह जानवर के ही दर्जे में ही गिना
जायेगा ।
आज का मानव अपनी प्रखर बुद्धि के बल से प्रकृति के प्रकोपों की आहट पहचानने में सक्षम हो गया हैं।मानव ने इस संसार की
सभी भौतिक सुख सुविधाओं को प्राप्त कर लिया है । आज वह अपनी प्रखर बु््द्धि के बल पर आसमान में पक्षियों के समान
उड़ने का आनन्द ले रहा है एवं मछलियों की तरह समुद्र के अथाह जल में तेर रहा है।यह मानव इतना ही नहीं ,बल्कि आसमान
को स्पर्श करने एवं चाँद,सितारों पर अपना आशियाना बनाने का प्रयास कर रहा है।इस चित्र में वैज्ञानिक मानव चन्द्रमा पर
लगभग ३४ किलोमीटर की यात्रा करके,सन्तरे के रंग की मिट्टी का नमूना ले रहा है। धन्य है मानव आज तूने उन्नति के शिखर
की चरम सीमा प्राप्त कर ली है ।
आज का मानव बौद्धिक शक्ति की उन्नति के साथ साथ अपनी आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत को भूलता जा रहा है ।
इसीलिये प्रतिदिन मानवता का ह्रास होता जा रहा है ।सहानुभूति एवं परोपकारिता की भावना उसके ह्रदय से इस प्रकार
अद्रशय हो रही है,जिस प्रकार कि समुद्र की लहरें तट को स्पर्श कर जल के भीतर अद्रशय हो जाती हैं ।
आज का मानव अपना भौतिक एवं सांसारिक अस्तित्व क़ायम करने के लिये,दूसरे मानव के रक्त को चूसने में ज़रा भी नहीं
हिचकता ।इसीलिये निम्नलिखित कथन सत्य प्रतीत होता है कि:-
"सोने के यह महल खड़े हैं,मिट्टी का ही सीना चीर "
अत: संसार में चारों ओर अराजकता एवं निराशा का वातावरण छाता जा रहा है ।इसी अराजकता एवं निराशा के वातावरण को
समाप्त करने के लिये,हमारी इस भारत भूमि या संसार में कोई न कोई महा मानव अवतार के रूप में पैदा होते रहे हैं ।आज से
२६१२ वर्ष पूर्व घोर मानवता के ह्रास के समय भारत की इसी पवित्र भूमि पर अहिंसा एवं करूणा के अवतार भगवान महावीर एवं गौतम स्वामी जी ने अवतार लिया एवं मानवता के पतन को बचाया था ।
किन्तु आज का मानव फिर पतनोन्मुख हो रहा है और इसी पतन को रोकने के लिये आज के इस युग में महात्मा गांधी जैसी
विभूति ने अपने प्राणों तक की आहुति दे दी थी ,फिर भी मानव अपने मानवीय मूल्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं हो पा रहा है। इसीलिये सर्वपल्ली राधाकृष्णन का निम्न कथन सत्य प्रतीत हो रहा है कि:- " आज का मानव आकाश में चिड़ियों की तरह
उड़ सकता है,पानी के अन्दर प्रवेश कर मछलियों की तरह तैर सकता है,किन्तु दुख है कि आज का मानव ज़मीन पर चलना
भूलता जारहा है ।


















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