ज़रूरतों के मुताबिक़ ज़िन्दगी जियो, ख़्वाहिशों के मुताबिक़ नहीं, क्योंकि ज़रूरत फ़क़ीर की भी पूरी हो जाती है ।
और ख़्वाहिश बादशाओं की भी अधूरी रह जाती है ।।
कौन जाने कब मौत का, पैग़ाम आजाएे , ऐ दोस्त मुझे इस दिन का इन्तज़ार है ।।
और ख़्वाहिश बादशाओं की भी अधूरी रह जाती है ।।
कौन जाने कब मौत का, पैग़ाम आजाएे , ऐ दोस्त मुझे इस दिन का इन्तज़ार है ।।
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