Monday, 5 August 2013

प्राथना और सेवा -----------

प्राथना हमारे भीतर का एक एेसा अनूठा भाव है,जो उनलोगों के शुख शान्ति और कल्याण के लिए जगता है,जो लोग हमारी
ज़िन्दगी के दायरे से संबन्धित नहीं हैं । हमारी सोच,हमारी कल्पना,हमारी कामनाओं से भी दूर है , उनकी सुख शान्ति चाहना
बहुत श्रेष्ठ भाव है ।
और सेवा ? सेवा भी प्राथना जैसा ही श्रेष्टतम भाव है जो सक्रिय होकर उन तक पहंुचता है , जो हमारे जीवन
के निकट है,हमसे सम्बन्घित है ओर हमारे आस पास है ।उन्हें ऊँचा उठाने के लिए रचनात्मक रूप से सहयोगी बनता है ।
सेवा का पवित्र भाव हमें संवेदनशील बनाता है ।हमें उस तरफ़ ले जाता है जहाँ हमारी शक्ति का सही उपयोग होता है । दूसरी
ओर सेवा भाव हमारे जीवन की विसंगतियों को दूर करता है ।हमें उसके अभिमुख करता है ,जिसकी हम प्राथना करते हैं ।
संक्षेप में कह सकते हैं ,सेवा जगत और जगदीश्वर से जोड़ने वाला सेतु है ।





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