Wednesday, 19 February 2020

कर्नाटक प्रान्त पर्यटक की दृष्टि से एक महत्व पूर्ण एवं साँसकृतिक रूप से सम्पन्नमशहूर शहर की यात्रा की सुखद झलकियाँ :--

        श्रवणवेलगोला में विंध्यागिरि स्थित जैन धर्म अद्वितीय एवं मशहूर पवित्र भगवान गोमटेश्वर बाहुवली के विधि विधान से पूजा पाठ करने एवं अनेकों जैन धर्म के अनुयाईयों की तपस्यास्थली की पवित्रता का आध्यात्मिक आनन्द लेने के पश्चात,अपनी दोनो बेटियों के परिवार के साथ माह मार्च २०१९ के तीसरे सप्ताह में ,अपनी यात्रा के दूसरे पड़ाव मैसूर शहर के लिये रवाना हो गये।मैसूर शहर श्रवणवेलगोला से ८० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।यह शहर पर्यटन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण है।इस शहर में सबसे ज़्यादा पर्यटक दशहरा उत्सव के समय में बहुत आते हैं,क्योंकि दशहरा उत्सव यहाँ बड़े राजसी ठाठवाट के साथ मनाया जाता है।इस समय वाडियार राजपरिवार की तरफ़ से बड़े शान शौक़त से हाथियों की एवं सुन्दर झलकियाँ के साथ सवारियाँ निकाली जाती हैं।मैसूर महल एवं आसपास के स्थलों,जैसे जगमोहन प्लेस ,जय लक्ष्मी पैलेस एवं ललित महल आदि रमणीक स्थानों पर बारह महीने बड़ी चहल पहल एवं त्योंहारों जैसा वातावरण रहता है।

महाराजा पैलेस का राजमहल मैसूर के कृष्ण राज वाडियार चतुर्थ ने बनवाया था।इससे पहले का राजमहल चन्दन की लकड़ियों से बना हुआ था।एक दुर्घटना में इस महल की बहुत क्षति हो गई थी,इसके पश्चात इसी स्थान पर दूसरा महल बनवाया गया था,फिर इसी स्थान पर एक संग्रहालय भी बनवाया गया था।अब उसी स्थान पर पहले से अधिक सुन्दर एवं आकर्षित महल बना हुआ है।अब हमने दूसरे पड़ाव की सुखद यात्रा को आगे बजाते हुये इस राजमहल के साथ दूसरे दर्शनीय स्थल जैसे टीपू सुल्तान का महल,वृन्दावन गार्डन,प्रसिद्ध चिड़ियाघर  एवं चामुण्डा पर्वत पर महिषासुर की प्रतिमा एवं जी आर एस फैंटेसी पार्क या अम्यूजमेंट पार्क आदि को देखने का प्रोग्राम बनाकर शुरू किया।यह नगर अति सुन्दर एवं स्वच्छ है।इसमें रंग विरंगे पुष्पों से युक्त बाग़ बगीचों की भरमार है।अनेकों दर्शनीय स्थानों के आकर्शणों के कारण ही इस शहर को पर्यटकों का स्वर्ग कहते हैं।यहाँ का मैसूर पैलेस द्रविड़ और रोमन स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है।नफ़ासत
से घिरे सलेटी पत्थरों से बना यह महल गुलाबी                 रंग के पत्थरों के गुम्बदों से सज़ा है।यह गुम्बद सोने के पत्रों से सज़ा है।यह सूरज की रोशनी में ख़ूब जगमगाते हैं।यहाँ पर ८४ किलो सोने से सज़ा एक लकड़ी का हौद भी है।दशहरे के उत्सव पर इसको हाथी के ऊपर रख कर राजा की सवारी निकली है।अन्दर घूमने पर हम लोगों को एक विशाल कक्ष मिला,जिसके किनारे गलियारे में थोड़ी थोड़ी दूरी पर स्तम्भ बनें हुये हैं,इन सतम्भों एवं छतों पर बारीक सुनहरी नक़्क़ाशी है।दीवारों पर क्रम से अनेक चित्रों से सजी हुई हैं,यह चित्र सभी वाडियार परिवार के हैं।कक्ष के बीचों बीच छत नहीं है और ऊपर गुम्बज हैं,जो रंग विरंगे काँचों से सजे हुये हैं।इन रंग विरंगे काँचों का चुनाव ,सूरज और चाँद की रोशनी को महल में ठीक प्रकार से पँहुचाने के लिये किया गया है।और हफ़्ते के आख़िरी दिनों में,छुट्टियों एवं दशहरे के उत्सव पर महल को बिजली की रोशनी से एवं सजावट के अनेक उपकरणों से ऐसे सजाया जाता है कि आँखें भले ही चौंधिया जांय,लेकिन नज़रें उनसे नहीं हटती हैं।बिजली के ९७००० बल्व महल को एेसे जगमगा देते है जैसे चाँदनी रात्रि में जगमगाते हैं।जगमगाती रोशनी में महल की सुन्दरता अद्भुत रहती है।दूसरे दिन हम लोगों ने जी आर एस फैन्टेसी पार्क या अम्यूजमेंट पार्क,जो कि ३० एकड़ में फैला हुआ है ,घूमने का आनन्द लिया।इस पार्क के मुख्य आकर्षण पानी के खेल,रोमांचक सबारी और बच्चों के अनेकों
प्रकार के खेल तमासे सबको बहत आकर्षित। करते हैं।इसके पश्चात हम सब लोगों ने मैसूर के दक्षिण से १५ किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित चामुण्डेस्वरी के मन्दिर के दर्शन करने के लिये रवाना हो गये।यह मन्दिर माँ दुर्गा जी को समर्पित है,इस मन्दिर का निर्माण १२ वीं शताब्दी में किया गया था।यह मन्दिर माँ दुर्गा जी की,राक्षस महिसासुर के ऊपर विजय का प्रतीक है।पहाड़ी की चोटी से मैसूर शहर का बड़ा मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है।पहाड़ी के रास्ते में काले पत्थर से बना
नंदी बैल के भी दर्शन होते हैं।इस रास्ते में बहुत से इम्पोरियम भी हैं,इनके अन्दर चन्दन से बनी हुई सुन्दर वस्तुयें,सुन्दर मैसूर की साड़ियों आदि अनेकों ख़ूबसूरत वस्तुयें मिलती हैं।