Saturday, 12 August 2017

जैन तीर्थ काशी वाराणसी की यात्रा :--- तारीख ५/६ अगस्त २०१७ को बेटी आरती गुप्ता(डौली) के साथ कार द्वारा इलाहाबाद से वावतपुर हवाई अड्डा वाराणसी होते हुये बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के गेस्टहाउस ---------------------------रात्रि ८ बजे पँहुचे और रात्रि वहीं विश्राम किया।यह विश्वविद्यालय भारत ही नहीं बल्कि संसार के विख्यात विश्वविद्यालय की श्रेणी में है।यह करीवन ११ किलोमीटर के विशाल दायरे में फैला हुआ है । हआ ह

ासबसे पहले प्रात: गेस्ट हाउस में सब क्रियायों से निवर्त होकर विशाल क्षेत्र में फैले हुये इस विश्वविद्यालय का कार द्वारा क्रमबध  घूमना शुरू किया।एक साइड में अनेकों विद्यार्थियों के लिये रहने के लिये बहुत सारे होस्टल बने हुये हैं।दूसरी साईट में अनेकों विभिन्न विषयों की पढ़ाई के लिये अनेकों फ़ैकल्टीज के विशाल भवन बने हुये हैं।इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के गैम्स के लिये अनेकों फ़ील्ड एवं दर्शकों के लिये साथ में दर्शक दीर्घाये बनी हुई हैं।कुछ लेनों में पढ़ाने बाले प्रोफ़ेसरों के लिये निवास स्थान बने हुये हैं।कैम्पस में चारों ओर बड़े बड़ें  वृक्ष एवं पार्कों के हरियाली के दर्शन होते हैं।अनेकों स्पोर्ट्स ऐकेडमी एवं एन. एन. सी. आदि के विभाग देखने को मिले।इस सुन्दर वि्श्वविध्यालय की वातावरण मनमोहक एवं विद्या अध्ययन के लिये प्रोत्साहित करता है।अत: एक घंटा कार द्वारा बी.एच.यू. कैम्पस घूमने के पश्चात गेस्ट हाऊस बापिस आकर नास्ता करके,पुन: दूसरे विख्यात पार्श्वनाथ विद्यापीठ आई.टी.आई.रोड करौंदी,वाराणसी पहुँचे।यह स्थान कैम्पस से लगा हुआ कुछ ही दूरी पर है।यह विद्यापीठ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त है।यहाँ पहुँच कर मुझे एक अद्भुत ६६ वर्ष पूर्व स्मृति के आनन्द का आभास होने लगा।यहाँ के प्रबन्धक श्री शुक्ला जी से भेंट करके इस अनूठे जैन दर्शन के शोध करने के विषय पठन पाठन एवं जैनधर्म व जैनदर्शन से सम्बन्धित 
विशाल पुस्तकालय के बारे में जानकारी प्राप्त की।इसके अतिरिक्त उन्होंने मुझे बताया कि अनेकों जैन साधू श्रावक यहाँ जैन धर्म के शोध विषय सम्बन्ध में विशाल पुस्तकालय का इस्तेमाल करते हैं।मेने भी उनको अपना ६६ वर्ष पूर्व का अनुभव का वर्णन बताते हुये कहा कि में अपने सहधर्मी दोस्त भाई श्री स्वर्गीय ओमप्रकाश एवं चन्द्रभान जैन के साथ इसी स्थान पर सन १९५० में आया था।उस समय इसी स्थान पर आगरा से पैदल यात्रा करते हुये गुजरात के महान जैन सन्त स्व. श्रध्देय जगजीवन राम जी एवं उनके पुत्र शिष्य श्रध्देय जयन्ती मुनि जी महाराज पधारे हुये थे।