Sunday, 3 December 2017

६वें तीर्थंकर १००८ भगवान पद्मप्रभु जी के जन्म स्थान एवं भगवान बुद्ध के छटे और नौवें वर्ष में कौशाम्बी जनपद के परगना करारी, मुख्यालय मझंनपुर,उत्तर प्रदेश में पधारे थे।उसका विवरण निम्न प्रकार से है:---


श्री जिनेन्द्र भगवान की अनुकम्पा से २दिसम्बर २०१७ को विगत कई वर्षों की मन की भावना थी कि तीर्थंकर १००८ भगवान पद्मप्रभु जी के जन्मस्थान के दर्शन एवं पूजा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।जैन धर्म के छँटवे(६वें) तीर्थंकर १००८ भगवान पद्मप्रभु जी का जन्म कौशाम्बी जनपद के करारी परगना उत्तर प्रदेश के इक्ष्वाकु वंश में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष द्वादशी के चित्रा नक्षत्र में हुआ था।इनके माता पिता बनने का सौभाग्य राजा धरणराज और सुसीमा देवी को प्राप्त हुआ। श्री पद्मप्रभु जी के शरीर का वर्ण लाल और चिन्ह कमल था।पद्म लक्षण से युक्त होने के कारण प्रभु का नाम पद्मप्रभु रखा गया। एक राजवंशी परिवार में जन्मे श्री पद्मप्रभु जी ने तीर्थंकर बनने से पहले वैवाहिक जीवन और राजा के दायित्व की ज़िम्मेदारी से निर्वाह किया था।समय आने पर अपने पुत्र को राजपद प्रदान करके उन्होंने कार्तिक कृष्णा त्रियोदशी के पावन दिन दीक्षा प्राप्त की।छह माह की तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान व केवलदर्शन की प्राप्ति हुई।उन्होंने ही चतुर्विध तीर्थ की स्थापना करके संसार के लिये कल्याण के द्वार खोल दिये।जीवन के अन्त में श्री सम्मेद शिखर पर प्रभु ने निर्वाण पद प्राप्त किया।कमल भगवान पद्मप्रभु जी का चिन्ह है।श्री भगवान पद्मप्रभु के शरीर की शोभा रक्त कमल के समान थी।भगवत गीता के अनुसार जिस कीचड़ में खिलने के बाद भी कमल बेहद सुन्दर फूलों में शुमार है ,उसी तरह मनुष्य को भी विषम परिस्थितियों में हार नहीं माननी चाहिये ।
                  यह कौशाम्बी जनपद का करारी परगना,उत्तर प्रदेश जैन धर्म के तीर्थ के साथ साथ बुद्ध धर्म के भी तीर्थ क्षेत्र की गिनती में भी शुमार है।यह भगवान बुद्ध के काल की प्रसिद्ध नगरी था,जो वत्स देश की राजधानी थी।यह नगरी यमुना नदी के किनारे बसी हुई थी और यह स्थान एेतिहासिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।यहाँ के पर्यटन स्थलों में हिन्दू धर्म के प्रभाष गिरि,दुर्गा देवी और श्री राम मन्दिर भी प्राचीन काल में प्रसिद्ध थे।भगवान बुद्ध ,केवलज्ञान प्राप्त करने के छटे और नौवें बर्ष में विचरण करते हुये चतुर्मास ( बर्षा काल में चार माह तक एक स्थान में रहते हैं )किये थे।उस समय यहाँ पर वत्स महाजनपद के राजा उदयन की राजधानी थी।यह नगरी आज कल इलाहाबाद जनपद के दक्षिण-पश्चिम से ६३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।प्राचीन काल में यह नगरी कौशाम के नाम से जाना जाता था।आज भी यहाँ पर भगवान बुद्ध के दो चतुर्मास में रहने के अवशेष ( खन्डरो ) के रूप में स्थित हैं।यह भारत सरकार के आर्कोलोजिकल विभाग के अन्तर्गत हैं। आजकल यहाँ पर श्रीलंका और कम्बोडिया की बौद्ध सोसाइटी के द्वारा दो बड़े सुन्दर बौद्ध मन्दिर बने हुये हैं।हमको कम्बोडियन मोनेस्टरी कौशाम्बी द्वारा अति सुन्दर निर्मित भगवान बुद्ध के मन्दिर में भगवान बुद्ध की प्रतिमा के सामने बैठ कर दर्शन करने व पूजा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस पूजा को विधि पूर्वक कराने में विराजित श्री भन्ते जी ने स्वय्म साथ बैठ कर कराने में पूर्ण सहयोग किया। इसके पश्चात उन्होंने,अपने शहर कम्बोडिया की
ग्रीन टी बिस्कुट के पान कराके हम लोगों के मन को मोह लिया।उनको धन्यबाद देने के पश्चात हम लोग कार द्वारा इलाहाबाद के लिये बापिस आ गये।इसके अतिरिक्त इन सब स्थानों के दर्शन कराने एवं घुमाने में यहाँ के पुलिस इन्सपेक्टर श्री त्रिपाठी जी ने साथ रहकर पूर्ण सहयोग किया।इन सब पवित्र एवं दर्शनीय मन्दिरों,भगवान बुद्ध के रहने व ठहरने के स्थानों, के खन्डर बने अवशेषों  के कुछ चित्रों को चित्रित करने का प्रयास किया है।





Thursday, 5 October 2017

मंगल- धुन----------

             सबसे बढ़कर है नवकार करता है भवसागर पार ।
              चैदह पूर्व का यह सार, बारम्बार जपो नवकार  ।।
              ऋषभ जय, प्रभु पारस जय जय  ।
              महावीर जय, गुरू गौतम जय जय ।।
              महावीर को भज ले मनवा, गौतम को भज ले ।
              शान्ति करगें , शान्तिनाथ  को भज  ले। ।।
              देव हमारे श्री  अरिहन्त, गुरू  हमारे सदगुणी संत ।
              धर्म हमारा दया - प्रधान , शास्त्र  हमारे ज्ञान निधान ।
               श्रमण भगवन्त श्रीमहावीर , त्रिशलानन्दन हरियों पीर ।। 
 

Saturday, 12 August 2017

जैन तीर्थ काशी वाराणसी की यात्रा :--- तारीख ५/६ अगस्त २०१७ को बेटी आरती गुप्ता(डौली) के साथ कार द्वारा इलाहाबाद से वावतपुर हवाई अड्डा वाराणसी होते हुये बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के गेस्टहाउस ---------------------------रात्रि ८ बजे पँहुचे और रात्रि वहीं विश्राम किया।यह विश्वविद्यालय भारत ही नहीं बल्कि संसार के विख्यात विश्वविद्यालय की श्रेणी में है।यह करीवन ११ किलोमीटर के विशाल दायरे में फैला हुआ है । हआ ह

ासबसे पहले प्रात: गेस्ट हाउस में सब क्रियायों से निवर्त होकर विशाल क्षेत्र में फैले हुये इस विश्वविद्यालय का कार द्वारा क्रमबध  घूमना शुरू किया।एक साइड में अनेकों विद्यार्थियों के लिये रहने के लिये बहुत सारे होस्टल बने हुये हैं।दूसरी साईट में अनेकों विभिन्न विषयों की पढ़ाई के लिये अनेकों फ़ैकल्टीज के विशाल भवन बने हुये हैं।इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के गैम्स के लिये अनेकों फ़ील्ड एवं दर्शकों के लिये साथ में दर्शक दीर्घाये बनी हुई हैं।कुछ लेनों में पढ़ाने बाले प्रोफ़ेसरों के लिये निवास स्थान बने हुये हैं।कैम्पस में चारों ओर बड़े बड़ें  वृक्ष एवं पार्कों के हरियाली के दर्शन होते हैं।अनेकों स्पोर्ट्स ऐकेडमी एवं एन. एन. सी. आदि के विभाग देखने को मिले।इस सुन्दर वि्श्वविध्यालय की वातावरण मनमोहक एवं विद्या अध्ययन के लिये प्रोत्साहित करता है।अत: एक घंटा कार द्वारा बी.एच.यू. कैम्पस घूमने के पश्चात गेस्ट हाऊस बापिस आकर नास्ता करके,पुन: दूसरे विख्यात पार्श्वनाथ विद्यापीठ आई.टी.आई.रोड करौंदी,वाराणसी पहुँचे।यह स्थान कैम्पस से लगा हुआ कुछ ही दूरी पर है।यह विद्यापीठ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त है।यहाँ पहुँच कर मुझे एक अद्भुत ६६ वर्ष पूर्व स्मृति के आनन्द का आभास होने लगा।यहाँ के प्रबन्धक श्री शुक्ला जी से भेंट करके इस अनूठे जैन दर्शन के शोध करने के विषय पठन पाठन एवं जैनधर्म व जैनदर्शन से सम्बन्धित 
विशाल पुस्तकालय के बारे में जानकारी प्राप्त की।इसके अतिरिक्त उन्होंने मुझे बताया कि अनेकों जैन साधू श्रावक यहाँ जैन धर्म के शोध विषय सम्बन्ध में विशाल पुस्तकालय का इस्तेमाल करते हैं।मेने भी उनको अपना ६६ वर्ष पूर्व का अनुभव का वर्णन बताते हुये कहा कि में अपने सहधर्मी दोस्त भाई श्री स्वर्गीय ओमप्रकाश एवं चन्द्रभान जैन के साथ इसी स्थान पर सन १९५० में आया था।उस समय इसी स्थान पर आगरा से पैदल यात्रा करते हुये गुजरात के महान जैन सन्त स्व. श्रध्देय जगजीवन राम जी एवं उनके पुत्र शिष्य श्रध्देय जयन्ती मुनि जी महाराज पधारे हुये थे।